अर्पित सर्वेश ने रचा साहित्य में इतिहास, 17 भाषाओं में की पुस्तक प्रकाशन से देश को दिलाया गौरव
Indian 24 Circle News
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश:
उत्तर प्रदेश के युवा साहित्यकार अर्पित शुक्ला, जिन्हें साहित्यिक दुनिया में अर्पित सर्वेश के नाम से जाना जाता है, ने अपने लेखन कौशल से न केवल राज्य का बल्कि पूरे भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है। भगवान शिव की श्रद्धा में अपना साहित्यिक नाम "अर्पित सर्वेश" रखने वाले अर्पित ने 21 वर्ष की आयु में एक ही दिन में 15 विदेशी भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित कर विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया है।
17 दिसंबर 2002 को प्रतापगढ़ जिले में जन्मे अर्पित अपने परिवार में छोटे भाई हैं। उनके पिता डॉ. संतोष शुक्ला एक विद्यालय में प्रधानाचार्य हैं, माता श्रीमती अनीता शुक्ला गृहिणी हैं और बड़े भाई बैंक में कार्यरत हैं। अर्पित की प्रारंभिक शिक्षा आत्रेय एकेडमी, CBSE स्कूल से हुई जहाँ उन्होंने LKG से लेकर 12वीं तक पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से स्नातक किया और वर्तमान में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में परास्नातक कर रहे हैं।
साहित्यिक यात्रा की शुरुआत:
अर्पित की लेखनी का सफर Light of Darkness नामक पहली प्रकाशित पुस्तक से शुरू हुआ। इस पुस्तक ने उन्हें लेखन की एक नई दिशा दी और उनके भीतर की रचनात्मकता को उजागर किया। इसके बाद उन्होंने 150 से अधिक संकलनों में सह-लेखक के रूप में भाग लिया, जिनमें प्रेम, समाज, राजनीति, आध्यात्म और शिक्षा जैसे विषय शामिल थे।
अर्पित को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई बार सम्मानित किया गया है। उनकी पहली स्वतंत्र पुस्तक Words of Arpit उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर रही। इसके अलावा उन्होंने Insane Lover और Arpit Ki Neeti नामक पुस्तकों का संपादन किया। उन्होंने एक शैक्षणिक पुस्तक Apprendre English Grammar तथा Verity of India जैसी सामाजिक विषयों पर आधारित पुस्तक भी प्रकाशित की है।
उनकी सबसे विशेष उपलब्धियों में शामिल है – 17 भाषाओं में पुस्तकों का प्रकाशन, जिनमें जर्मन, तुर्की, फ्रेंच, स्पेनिश, अरबी, जापानी, कोरियन, कुर्दिश, हिंदी, संस्कृत आदि प्रमुख हैं। वे कुर्दिश भाषा में पुस्तक प्रकाशित करने वाले पहले भारतीय बने। उन्हें तीन बार विश्व रिकॉर्ड प्राप्त हुआ है और वर्ष 2024 में International Icon Award से भी सम्मानित किया गया।
अर्पित की सभी पुस्तकों का मूल संदेश है – आदतें बदलो, जीवन बदलेगा। वे मानते हैं कि जीवन में सच्चा बदलाव तब आता है जब व्यक्ति अपनी सोच और आदतों को सुधारता है। वे अपने अनुभवों को साझा करते हुए यह बताते हैं कि कैसे चुनौतियाँ जीवन का हिस्सा हैं और उनसे डरने की बजाय उनका सामना कर आत्मविकास किया जा सकता है।
अर्पित अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता डॉ. संतोष शुक्ला, माता श्रीमती अनीता शुक्ला, दादाजी जगदंबा प्रसाद शुक्ला, ईश्वर और अपने सभी प्रियजनों को देते हैं। वे मानते हैं कि इन सभी के आशीर्वाद और प्रेरणा ने ही उन्हें आज इस मुकाम तक पहुँचाया।
अर्पित सर्वेश की साहित्यिक यात्रा देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है। उन्होंने अपने विचारों, मेहनत और समर्पण से यह साबित कर दिया है कि भाषा की कोई सीमा नहीं होती। भारत को अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मानचित्र पर स्थापित करने में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
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