जनरल कोच के यात्रियों के लिए राहत की खबर,रेलवे में पुरानी व्यवस्था लागू, लंबी दूरी के ट्रेनों में लगे आगे-पीछे जनरल कोच Indian 24 Circle News

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जनरल कोच के यात्रियों के लिए राहत की खबर,रेलवे में पुरानी व्यवस्था लागू, लंबी दूरी के ट्रेनों में लगे आगे-पीछे जनरल कोच

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भारतीय रेलवे ने लंबी दूरी के ट्रेनों में दोनों ओर जनरल कोच लगाने की व्यवस्था लंबे समय से शुरू कर रखी थी, लेकिन एलएचबी कोच आने के बाद इसमें बदलाव किया गया। कुछ ट्रेनों में सिर्फ एक ओर ही जनरल कोच रह गया, जबकि कुछ ट्रेनों से इसकी संख्या कम कर दी गई थी या फिर इसे पूरी तरह हटा दिया गया। इससे यात्रियों को यह समझने में दिक्कत होती थी कि जनरल कोच ट्रेन के आगे की ओर है या पीछे की ओर।

मालूम हो कि, चेन पुलिंग को ठीक करने में समय बर्बाद होता है। इसमें लगने वाले समय को कम करने के लिए रेलवे ने लंबी दूरी के ट्रेनों में आगे पीछे जनरल कोच लागने की व्यवस्था फिर से लागू किया है। साथ ही प्लेटफॉर्म पर एक जगह भीड़ इक्ट्ठा नहीं हो, इस लिहाज से भी ट्रेन की बोगियों की संरचना भी बदली गई है।

यह बदलाव जेनरल बोगी में चढ़ने के लिए लगने वाली लंबी कतार को छोटी करने के लिए किया गया है, ताकि चढ़ने के दौरान अफरातफरी नहीं मचे। इसे लेकर रेलवे बोर्ड के संयुक्त निदेशक कोचिंग राजेश कुमार ने आदेश जारी किया था । उन्होंने सभी रेलवे जोन के महाप्रबंधक को पत्र भेजकर इसका अनुपालन करने का कहा था।

जीएम के पत्र के अनुपालन में बादशाहपुर रेलवे स्टेशन से ठहराव वाली ट्रेनों में जनरल बोगियों की संरचना बदलने का दिया गया है। लंबी दूरी के ट्रेन 15127/15128 -बनारस-नई दिल्ली-बनारस (चार जनरल कोच सहित 22कोच) काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस,15119/15120 बनारस-देहरादून-बनारस (चार जनरल कोच सहित कुछ16 कोच) जनता एक्सप्रेस और 13005/13006 हावड़ा-अमृतसर-हावड़ा (चार जनरल कोच सहित कुल 22 कोच) पंजाब मेल ट्रेन में यह बदलाव किया गया है। दो जनरल कोच इंजन के पास और एसी कोच,स्लीपर कोच के बाद दो जनरल कोच लगाई गई है।

नई व्यवस्था को लेकर रेलवे स्टेशनों पर बार-बार उद्घोषणा कराई जा रही है। रेलवे अधिकारियों के अनुसार एक ही जगह सभी जनरल बोगियां रहने से यात्रियों को परेशानी होती थी। सीट पाने के लिए लोग घंटों लंबी लाइन में लगे रहते थे। नंबरिंग के आधार पर एक-एक कर ट्रेन में चढ़ाने में ट्रेन खुलने का समय हो जाता था। इससे पीछे लाइन में खड़े लोगों को दौड़कर चढ़ना पड़ता था। इस दौरान कई लोगों की ट्रेन छूट जाती थी।


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